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Ritikalain Hindi Sahitya

By Prof. Avadhesh Kumar   |   Mahatma Gandhi Antrarashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Gandhi Hill, Wardha, Maharashtra
Learners enrolled: 515

रीतिकालीन हिंदी कविता की शुरूआत केशवदास की कविप्रियाऔर रसिकप्रियासे होती है बाद में चिंतामणिके लक्षण ग्रंथों की अखण्ड परंपरा चली उसके बाद तो लक्षण ग्रंथों की बहुतायत सी होने लगी। इसी बीच कविता लिखने की एक विशिष्ट परिपाटी बन गई। इस समय के आचार्य कवि संस्कृत साहित्य की जिस उत्तर कालीन परंपरा के अनुयायी थे उनमें भी बहुत सूक्ष्म विश्लेषण अनुपस्थित था। चिंतन का धरातल यहाँ इसलिए भी बहुत विकसित नहीं था कि गद्य की विवेचन शैली इन आचार्य कवियों के पास नहीं थी इनका शास़्त्र ज्ञान अपेक्षाकृत सीमित और अपरिपक्व था इनकी पहुँच चंद्रालोक’, ‘कुवलयानंद’, ‘रसतरंगिणी’, ‘रसमंजरीअधिक से अधिक काव्य प्रकाशऔर साहित्य दर्पणतक थी।

 ‘ध्वन्यालोकलोचन’, ‘वकोक्तिजीवितम’, ‘काव्यांलकार सूत्रवृत्तिजैसे ग्रंथों तक प्रायः यह नहीं गये। कुलपति मिश्र जैसे एकाध आचार्य कवियों में काव्यांगों के अंतर्सम्बन्ध का प्रश्न चाहे उठाया हो, अधिकतर कवि काव्य लक्षणों की सामान्य चर्चा तक ही सीमित थे। हिंदी के रीति ग्रंथों में प्रायः तीन प्रकार की निरूपण शैली दिखाई पड़ती है – 1. काव्य प्रकाश की निरूपण शैली-जिसमें सभी काव्यांगों पर विचार किया गया। जैसा सेनापति का काव्य कल्पद्रुमचिंतामणि का कविकुल कल्पतरु’ ‘काव्य विवेक’, कुलपति मिश्र का रस रहस्य, 2. श्रृंगार तिलक, रसमंजरी आदि की श्रृंगार रसमयी नायिका भेद वाली शैली जिसमें श्रृंगार अंगों का विवेचन तथा नायिका भेद निरूपण व्याख्यान है- जैसे केशवदास की रसिक प्रिया’, मतिराम का रसराज’, देव का भाव विलास’, ‘रसविलास’, भिखारीदास का रस निर्णय, 3. तीसरी शैली जयदेव के चंद्रालोकऔर अप्पय दीक्षित के कुवलयानंदके अनुकरण पर चलने वाली अलंकार निरूपण शैली जैसी करनेस का श्रुतिभूषणमहाराज जसवंत सिंह का भाषा भूषण’, सूरति मिश्र का अलंकार मालाआदि। इसी काल में वीर रस के ओजस्वी कवि भूषण भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।

आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का समय संवत 1700 से 1900 निर्धारित करते हुए यह भी कहा कि रस की दृष्टि से विचार करते हुए कोई चाहे तो उसे श्रृंगार कालकह सकता है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को श्रृंगारकालनाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया-  1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध     3. रीतिमुक्त। रीतिबद्ध में चिंतामणि, भिखारीदास तथा देव रीतिसिद्ध में बिहारीलाल तथा रीतिमुक्त काव्य में घनानंदआलम, बोधा तथा ठाकुर जैसे महत्वपूर्ण कवि आते हैं। रीतिबद्ध एवं रीतिसिद्ध परंपरा में ऐंद्रिकता का जो विस्तार दिखाई देता है वह राजदरबारों में विकसित काव्य का परिणाम है जिसका भोज के श्रृंगार प्रकाशके आलोक में विकसित हुआ रूप देखा जा सकता है। रीतिबद्ध कवियों से अलग हटकर इस दौर में कुछ ऐसे कवि भी हुए जिन्होंने अपनी सहज भावानूभूति को वाणी दी। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर  आदि इस  प्रवृत्ति के मुख्य कवि हैं। इनके प्रेम वर्णन में अपेक्षाकृत एक निष्ठता है।

इस काल में कुछ गद्य रचनाएं भी लिखी गई जो ब्रजी और खड़ी बोली के मिश्रण के रूप में व्यवहृत हैं। जिन पर चौरासी वैष्णवों की वार्ताऔर दो सौ बावन वैष्णवोंका प्रभाव था। अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में हिंदी के रीतिकाल का दौर बहुता लंबा है। सीमित विषय पर  लगभग ढाई-तीन सौ साल तक लगातार कविता लिखी जाती रही। रीतिकाव्य की सबसे बडी उपलब्धि यह रही कि इसने हिंदी के एक बहुत बडे़ सरस सहदय समाज का निर्माण किया। सांस्कृतिक एवं कलात्मक वैभव चरम पर रहा। कलात्मक चातुरी लाक्षणिक बैचित्र्य इस काल की अनुपम देन कही जा सकती है। साथ ही ब्रजभाषा भी वाकसिद्ध कवियों के हाथों मज-सँवर कर अत्यंत लोचयुक्त ललित और व्यंजक काव्य भाषा बन गई।

अनेक सीमाओं के बावजूद रीतिकाव्य ने हिंदी साहित्य में काव्य कलाऔर शब्द साधनाकी चेतना जगाई। इससे इनकार नहीं किया जा सकता । इसी काल में बृंद और गिरधर कविराय जैसे कवियों ने नीतिकाव्य रचकर  उसके आयाम को विस्तृत किया। एक प्रकार से यह काल भक्ति, नीति और श्रृंगार की त्रिवेणी का काव्य है। यद्यपि इसमें श्रृंगार की प्रधानता है डॉ. नगेंद्र ने श्रृंगारिकता को रीतिकाल की स्नायुओं में बहने वाली रक्त धाराकहा है। फिर भी जीवन की सहज अनुभूतियों का सहज एवं सात्विक रूप कम नहीं है। रीतिकाव्य सीमित विषय पर समग्रता का काव्य है। रीतिकाव्‍य, काव्‍य की कसौटी पर कसी हुई कविता है। यह काव्‍य का वह विशिष्‍ट कालखंड है जिसमें कविता मानव अनुभव के मनोदैहिक पक्ष पर केंद्रित है, जो मनुष्‍य और प्रकृति के अंत:संबंध को मानव को प्रेक्षक के रूप में रखकर अभिव्‍यक्‍त होती है। रीतिकाव्‍य में बारहमासा और सतसई जैसे काव्‍यभेदों को प्रकृति, परिवेश और मनुष्‍य के मनोदैहिक पक्षों का काव्‍यशास्‍त्र की परिधि में रखकर काव्‍य के चमत्‍कार एवं आस्‍वाद के नए रूपों को प्रस्‍तुत किया है।  

इस पाठ्यक्रम का उद्देय है - 

·         रीतिकालीन हिंदी साहित्‍य के वैशिष्‍ट्य को रेखांकित करना।
·         रीतिकालीन साहित्‍य और समाज के अंतर्संबंधों को स्‍पष्‍ट करना।
·         रीतिकाव्‍यधारा के महत्‍वपूर्ण रचनाकारों की उपलब्धियों से परिचित कराना।
·         रीतिकालीन साहित्‍य के प्रमुख हिंदी आलोचकों की आलोचना-दृष्टि से परिचित कराना।
·         हिंदी साहित्‍य की परंपरा के नैरंतर्य को समझाना।  

Summary
Course Status : Completed
Course Type : Core
Language for course content : English
Duration : 16 weeks
Category :
  • Annual Refresher Programme in Teaching (ARPIT)
Level : None
Start Date : 01 Dec 2020
End Date : 31 Mar 2021
Enrollment Ends : 31 Dec 2020
Exam Date : 10 Apr 2021 IST

Note: This exam date is subject to change based on seat availability. You can check final exam date on your hall ticket.


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Course layout

पहला सप्‍ताह 

1.        रीतिकालीन साहित्‍य और उसकी पृष्‍ठभूमि

2.        काव्‍यशास्‍त्र की परंपरा और रीतिकाव्‍य

3.        रीतिकालीन काव्‍य एवं लक्षण ग्रंथों की परंपरा

4.        रीतिकाव्‍य का स्‍वरूप और वैशिष्‍ट्य

दूसरा सप्‍ताह

5.        रीतिकाल का नामकरण एवं वर्गीकरण

6.        आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल की दृष्टि में रीतिकाल

7.        आचार्य विश्‍व‍नाथ प्रसाद मिश्र की दृष्टि में रीतिकाल

8.        समकालीन प्रमुख आलोचकों की दृष्टि में रीतिकाल

तीसरा सप्‍ताह

9.        रीतिकालीन काव्‍य भाषा

10.      रीतिकाव्‍य और सौंदर्य बोध

11.      रीतिकाल में कृष्‍ण काव्‍य

12.      रीतिकाव्‍य में प्रकृति चित्रण

चौथा सप्‍ताह

13.      रीतिकाल में गद्य लेखन

14.      रीतिकाव्‍य में लोक जीवन

15.      रीतिकाल की राष्‍ट्रीय एवं सांस्‍कृतिक काव्‍य धारा

16.      रीतिकाव्‍य में नीति तत्‍व

पांचवा सप्‍ताह

17.      रीतिकाल के अलक्षित कवि

18.      कृष्‍ण भक्ति परंपरा में रीतिकाव्‍य का अवदान

19.      राम भक्ति परंपरा में रीतिकाव्‍य का अवदान

20.      केशवदास की काव्‍य कला

छठा सप्‍ताह

21.      आधुनिक हिंदी काल में रीति परंपरा के कवि

22.      काव्‍य शास्‍त्रीय परंपरा और चिंतामणि

23.      मतिराम की काव्‍य संवेदना

24.      भूषण की राष्‍ट्रीय एवं सांस्‍कृतिक चेतना

सातवां सप्‍ताह

25.      भिखारीदास का काव्‍य मर्म

26.      रहीम के साहित्‍य में लोक चेतना

27.      सेनापति का प्रकृति चित्रण

28.      बिहारी का काव्‍य वैभव

आठवां सप्‍ताह

29.      बिहारी का वाग्‍वैदग्‍ध्‍य  

30.      प्रेम की पीर के कवि घनानंद

31.      पद्माकर का काव्‍य सौंदर्य

32.      आलम की काव्‍य संवेदना

नवां सप्‍ताह

33.      रसोन्‍मत्‍त कवि बोधा

34.      रीतिमुक्‍त कवि ठाकुर का काव्‍य सौंदर्य

35.      रसलीन का सौंदर्य वर्णन

36.      सूक्तिकार कवि वृंद

दसवां सप्‍ताह

37.      लाल कवि की प्रबंध पटुता

38.      विद्यारसिक कवि महराज विश्‍वनाथ सिंह

39.      नीति की कुण्डलियों के कवि गिरधर कविराय

40.      ऋतु वर्णन एवं उल्‍लास का कवि द्विजदेव

Books and references

1.        सिंह, बच्‍चन (2008), बिहारी का नया मूल्‍यांकन, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

2.        सिंह, बच्‍चन, रीतिकालीन कवियों की प्रेमव्‍यंजना, काशी : नागरी प्रचारिणी सभा

3.        शर्मा, बालकिशन (2007), पद्माकर – काव्‍य का काव्‍यशास्‍त्रीय अध्‍ययन, गाजियाबाद : आकाश प. एंड डि.

4.        शुक्‍ल, रामचंद्र (2010), हिंदी साहित्‍य का इतिहास, नयी दिल्‍ली : प्रकाशन संस्‍थान

5.        चतुर्वेदी, रामस्‍वरूप (2007), हिंदी साहित्‍य और संवेदना का विकास, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

6.        मिश्र, विश्‍वनाथ प्रसाद (2000), बिहारी, वाराणसी : संजय बुक सेंटर

7.        कुमार, सुधींद्र (2002), रीतिकाव्‍य की इतिहास दृष्टि, नयी दिल्‍ली : वाणी प्रकाशन

8.        प्रसाद, शशिप्रभा (2007), रीतिकालीन भारतीय समाज, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

9.        शर्मा, सुधीर (1998), कविवर वृन्‍द : व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व दिल्‍ली : स्‍वराज प्रकाशन

10.      नवले, रमा (2010), भूषण का प्रशस्ति काव्‍य, कानपुर : विकास प्रकाशन

11.      मिश्र, विश्‍वनाथ प्रसाद (2006), हिंदी साहित्‍य का अतीत, नयी दिल्‍ली : वाणी प्रकाशन

12.      मिश्र, भगीरथ (1999), हिंदी रीति साहित्‍य, नई दिल्‍ली : राजकमल प्रकाशन प्रा.लि.

13.      गुप्‍त, गणपतिचंद्र (2007), हिंदी साहित्‍य का वैज्ञानिक इतिहास, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

14.      वर्मा, डॉ. रामकुमार (2007), हिंदी साहित्‍य का आलोचनात्‍मक इतिहास, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

15.      डॉ. सविता (2013), बोधाकृत्त इश्‍कनामामें रीति-तत्त्व, गाजियाबाद : कमला प्रकाशन

16.      सिंह, प्रभाकर (सं) (2016), रीतिकाव्‍य मूल्‍यांकन के नये आयाम, इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन

17.      डॉ. नगेंद्र (2000), रीतिकाव्‍य की भूमिका : नोएडा : मयूर पेपर बैक्‍स

18.      शर्मा, डॉ. रामकुमार (1992), देव और पद्माकर तुलनात्‍मक अध्‍ययन, दिल्‍ली : आत्‍माराम एंड संस

19.      शर्मा, रामविलास (2002), परंपरा का मूल्‍यांकन, नई दिल्‍ली : राजकमल प्रकाशन

20.      रत्‍नाकर, जगन्‍नाथदास (2010), बिहारी रत्‍नाकर, नयी दिल्‍ली : प्रकाशन संस्‍थान  

Instructor bio

Prof. Avadhesh Kumar

Mahatma Gandhi Antrarashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Gandhi Hill, Wardha, Maharashtra
प्रो. अवधेश कुमार महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालयवर्धा में हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग में आचार्य के पद पर पदस्‍थ हैं। प्रो. कुमार ने हिंदी विषय में पीएचडी उपाधि प्राप्‍त की है तथा 25 वर्ष का स्‍नातक, 18 वर्ष का स्‍नातकोत्‍तर अध्‍यापन अनुभव है। प्रो. कुमार ने दो पुस्‍तकें क्रमश: युगद्रष्‍टा कवि कबीर व निराला का काव्‍य राग से विद्रोह तक’ एवं दो पुस्‍तकों के संपादन का कार्य किया है। इसके अतिरिक्‍त तीन पुस्‍तकें प्रकाशनाधीन हैं। प्रो. कुमार 125 राष्‍ट्रीय व 20 अंतरराष्‍ट्रीय शोध संगोष्ठियों में विषय विशेषज्ञ/प्रतिभागी के रूप में सहभागिता कर चुके हैं। प्रो. अवधेश कुमार के निर्देशन में 18 पीएच-डी शोधार्थी उपाधि प्राप्‍त कर चुके हैं व 05 शोधार्थी शोधरत हैं। प्रो. अवधेश कुमार ने विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोगनई दिल्‍ली की 03 लघु शोध परियोजनाओं में कार्य किया है तथा सरदार वल्‍लभभाई पटेल विश्‍वविद्यालय वल्‍लभ विद्यानगर आणंदगुजरात में विजिटिंग फेलो’ के रूप में दो सप्‍ताह तक अध्‍यापन कार्य किया है।


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