प्रत्येक मनुष्य, समुदाय, राष्ट्र, देश की अपने इतिहास के प्रति जिज्ञासा स्वाभाविक है। कई तरीकों से इस जिज्ञासा का समाधान करने के प्रयास हुए हैं। इतिहास का शिकार ना हों इसके लिए ज़रूरी है नज़रिये का संतुलन। गाड़ी के शीशों की तरह। आगे देखने के लिए बहुत बड़ा शीशा है तो पीछे देखने के एक छोटा सा।आगे की सुरक्षित यात्रा के लिए पीछे का बोध।नजर आगे रहे पर पीछे का भी दृष्टि में रहे। किसी समाज और देश के साहित्य में समय की धड़कन को सुना जा सकता है। अपने समय की धड़कन सुनने की जद्दोजहद में ही इतिहास की ओर कदम उठता है।
अपनी साहित्यिक-सांस्कृतिक परंपराओं से इतिहास के माध्यम से जुड़ना संभव होता है। इतिहास के अध्ययन से विभिन्न युगों, धाराओं व रचनाकारों के साहित्य की विशिष्टताओं की समझ बढ़ती है। समकालीन साहित्य के विविध रूपों, आंदोलनों, विमर्शों के माध्यम से अपने युग का बोध भी होता है। संसार के यथार्थ के प्रति आलोचनात्मक संवेदनशील दृष्टि व संवेदनशील व्यक्तित्व के निर्माण में साहित्य की महती भूमिका है।
हिंदी साहित्य के इतिहास के अध्ययन से हिंदी साहित्य के सौंदर्य, कला तथा वैचारिक मूल्यों के प्रति विवेक का निर्माण होगा।इस पाठ्यक्रम में विभिन्न युगों के महान साहित्यकारों के जीवन और रचना कर्म के बारे में अध्ययन किया जाएगा। हिंदी साहित्य से परिचित होने के इच्छुक पाठकों के लिए उपयोगी रहेगा।
इस पाठ्यक्रम के बाद विद्यार्थी को हिंदी साहित्य की विभिन्न धाराओं व साहित्यिक परपंराओं से परिचय के साथ साथ हिंदी साहित्य के बदलाव के बिंदुओं की पहचान होगी। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल की विभिन्न धाराओं व उनके प्रमुख साहित्यकारों की रचना क्षमता व अभिव्यक्ति की विशिष्टताओं की पहचान कर पाएगा। आधुनिक हिंदी साहित्य के विभिन्न आंदोलनों की जानकारी।हिंदी गद्य की विधाओं की विशिष्टता की समझ बढ़ेगी।
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