एम.ए. हिंदी के विद्यार्थियों के लिए ‘MHD 05 साहित्य सिद्धांत और समालोचना’ का यह पाठ्यक्रम प्रस्तुत है । यह 8 क्रेडिट का पाठ्यक्रम है । एम. ए. हिन्दी के अन्य पाठ्यक्रमों में आप ने विभिन्न रचनाकारों और उनकी कृतियों यानी सृजनात्मक साहित्य का अध्ययन किया है । प्रस्तुत पाठ्यक्रम में आप साहित्यशास्त्र के सिद्धांतों और साहित्य समीक्षा अथवा आलोचना के विषय में अध्ययन करेंगे । हो सकता है आप में से कुछ विद्यार्थियों ने स्नातक स्तर पर साहित्य सिद्धांत विषयक कोई जानकारी प्राप्त की हो किंतु आप में से अधिकांश के लिए यह विषय नया है । साहित्य का मूल्यांकन करने वाला या साहित्य के सौंदर्य की परख करने वाला शास्त्र साहित्यशास्त्र कहलाता है । संस्कृत में इस शास्त्र के लिए अनेक नाम प्रचलित रहे हैं । काव्यशास्त्र, अलंकार शास्त्र, साहित्य विद्या, काव्यमीमांसा, साहित्य मीमांसा, क्रियाकल्प इत्यादि । इस शास्त्र में काव्य सौंदर्य का परीक्षण कर आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जाता है और इन सिद्धांतों के आधार पर ही काव्य के विविध अंगों का मूल्यांकन होता है । प्रस्तुत पाठ्यक्रम में भारतीय और पाश्चात्य चिंतन की परंपरा की जानकारी देते हुए प्रमुख आचार्यों और उनके सिद्धांतों के बारे में बताया गया है । प्राचीन सिद्धांतों के खंडन-मंडन और नवीन सिद्धांतों की स्थापना के प्रमुख बिंदुओं से अवगत कराने के साथ-साथ विद्यार्थियों को उन प्रमुख चिंतन श्रेणियों और विचारधाराओं से भी परिचित कराया गया है जिन्होंने आधुनिक आलोचना पद्धतियों को दिशा और दृष्टि दी । भारतीय और पाश्चात्य साहित्य चिंतन दृष्टि में समानता अथवा विषमता के महत्वपूर्ण पक्षों को उद्घाटित करते हुए विद्यार्थियों को भारतीय साहित्य के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता की पहचान कराई गई है । हिंदी आलोचना के विकास एवं स्वरूप की जानकारी दी गई है तथा प्रमुख हिंदी आलोचकों के योगदान पर प्रकाश डाला गया है । हमें विश्वास है कि यह पाठ्यक्रम हिंदी काव्यशास्त्र और आलोचना को समझने में आपके लिए अवश्य सहायक सिद्ध होगा ।।
काव्यशास्त्र, डॉ. भागीरथ मिश्र
संस्कृत आलोचना, आचार्य बलदेव उपाध्याय
भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका, डॉ.नगेंद्र
रस विमर्श, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी
पाश्चात्य काव्यशास्त्र, डॉ.देवेन्द्रनाथ शर्मा
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